श्री गुरुदेव सेवामण्डल का सेवक अहंकारसे दूर रहे!

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(राष्ट्रसंत श्री तुकडोजी महाराजजी का गुरुक्षेत्र वरखेड में आयोजित मध्यवर्ती सभा में, दि.१३/११/१९५१ को दिया गया भाषण)

 

मेरे सभी प्रचारक एवं मंडल के हितैषी भाईयो एवं बहनो।

हमारा सेवामण्डल का यह कार्य मै श्रीगुरुदेव के प्रती सेवा समर्पण का कार्य मानता हूँ। हमारा सेवाभाव यही हमारी सच्ची साधना मैं मानता हूँ। जिसमे हमारे पद, प्रतिष्ठा, अहंकार, मोह, मत्सर, द्वेषभाव की आहुती ही हमारे समुचे कार्य की सेवा साधना मैं मानता हूँ। यह मंडल की मध्यवर्ती सभा हमारे कार्य के चिंतन का सत्संग मैं मानता आया हूँ, जिसमें चिंतन, मंथन द्वारा हमारे समूचे कार्य को बढाना है और सुचारू रूपसे भारतवर्ष के हर गाँव में हमारे विचारो का अधिष्ठान मंडल की शाखा के रुपमें स्थापित करना है। हमारे भारत वर्ष को प्राचिन सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक समरसता के आधारपर उसे आगे बढाना हैं। यह मंडल का सर्व प्रथम सेवा स्वधर्म है ऐसा मैं मानता हूँ।

अब इसके लिये हमे क्या करना है, तो हमारी दिनचर्या, हमारा समूचा आचरण सेवामंडल के संविधान द्वारा चलता हुआ हमे दिखायी देना चाहिए। हर बात में हमारे कार्य एवं सभी बातोमें करुणाभरी होनी चाहिये उसको ही मैं आदर्श प्रचारक मानता हूँ। वरखेड के इस पावन धाम में हमे सदैव अपने कार्य का नवसंकल्प लेना चाहिये यह हमारी खास पहिचान होनी चाहिये।

बिना किसी अभिलाषा के और बिना किसी महत्वकांक्षासे हमें सेवामंडल में कार्य करना हैं। निष्काम सेवा ही उसकी प्रधानता हैं। इसीलिये कोई भी व्यक्ती मेरे पास संस्था के लिये हमे सदस्यता या हमें प्रचारक, जीवन प्रचारक या आजीवन प्रचारक इस श्रेणीमें प्रधानता दीजाय यह शिफारस लेकर आता हो, तो यह निश्चित हैं की वह इस संस्था के लायक मैं नहीं मानता। क्यों की। मैंने ऐसे कुछ लोग देखे हैं, जो सेवाभाव लेकर तो यहाँ आते हैं और बड़ा सेवाभाव भी दिखाते हैं। किन्तु कुछी दिनोमें उनका असली चेहरा अहंकार के भावसे प्रकट होने लगता हैं। सामुदायिक ध्यान प्रार्थना का अलमस्त नशा उनमें चढने के बजाएँ अपनेपनका और अपने दिनचर्या को बातबातमें लोगों के सामने प्रकट करने का सुनहराँ अवसर वह कुँढ़ा करते हैं। इसीलिये मैं हमेशासे कहता आ रहा है की, हमें आत्म प्रेरणाद्वारा श्रीगुरुदेव का आदेश मानकर उनकी छबीको हमारे हृदयासनमें लेकर स्वयंम प्रेरणाद्वारा हमें मंडल का कार्य करना है। मैं सेवामण्डल को स्वयं प्रकाशित लोगोंका एक संगठन मानता हूँ।

मैं हमारे निर्वाचन से पूर्व कुछ परिस्थितीयोंका निरिक्षण कर रहा हूँ, तो मुझे कुछ अजीबसा माहौल हमारे सेवा मंडल में मालुम होता नजर आ रहा हैं, जो आगे चलकर हमारे कार्य एवं सेवामंडल को खतम करने मे सहाय्यक हो सकता है। वो क्या है? वह है पदो की सदस्यता की लालसा, जो हमे अहंकार की गर्तता में ले जाने में हमारी बैरी बन सकती हैं। कुछ दिन पूर्व मुझे ऐसे खत मिले जिसमें लिखा था की, ‘महाराजजी! हम सेवामंडल का कार्य बडे जोर शोर से कर रहे हैं। हम सारा समय ध्यान प्रार्थना में लगे रहते हैं और हमारी दिनचर्या भी आदर्श ऐसी है और साथ में हमे तत्वज्ञान का ग्यान एवम् गहन अभ्यास भी है, तो कृपया हमे संस्था में उच्चपद, प्रचारक और सदस्यता दे दी जाय। क्यों की! मेरे जैसा और लायक व्यक्ती आपको मंडल में दुसरा कोई नहीं मिलेगा।’ यह उसकी भावना उसने अपने पत्रमें व्यक्त की थी। तो भाई उसपर मेरा जवाब सुनो! ‘मैं नहीं चाहता हूँ की कोई व्यक्ती शिफारस लेकर मेरे सामने आये। अगर आता हो तो यह मैं उस व्यक्तीके कार्य की नहीं बल्कि अपने अहंकार के तथा अपने पद की लालसा का प्रदर्शन इसे मानता हूँ, जो रहरहकर मेरेपन कि भावना को अभिव्यक्त करता हो, उसे मैं अपना नही मानता। इसीलिये आगे चलकर सेवामंडल में ऐसे महाशयोंका आगमन होता रहेगा, जो अपनेपन की गप्पे हाककर मुझे सदस्यता क्यों नही दी जानी चाहिये इसके लिये विवाद करेंगा और अपना एक गुट बनाकर अपना दवाव तंत्र का उपयोग इसके लिये वह करेगा। निर्वाचन में अपनी बडी अभिलाषा रखनेवाले को सदस्यता नही दी गयी तो संभव है वह आगे चलकर हमारे सेवामंडल को बदनाम करने का भरसक प्रयत्न करेंगा। मैं पहले ही कह चुका हूँ की सेवामंडल में कोई भी व्यक्ती किसी स्वार्थ लोलुपता का भाव लेकर आता हो और ऐसे व्यक्ती को समाज में भलेही बड़ा मान हो, लेकिन उसे सेवामंडल में कोई स्थान नही। क्यों की! ऐसे व्यक्ती द्वारा किसी भी संघठन का या संस्था का भला नहीं होगा। परंतु सत्यानाश होने में देर नही लगेंगी इस बात को हमे समझना चाहिए। इसीलिए मित्रो! हमें हमारी सारी मलिनता को हटाकर शुद्ध और सात्विकता को प्रकट कर हमें सेवामंडल में प्रचार कार्य करना हैं।

इस बातपर चिंतन कर के ही हमें कार्य का मुल्यांकन करना होंगा की, कई ऐसे लोग हमारे मंडल के सदस्य तो नहीं? अगर हो तो उनपर तत्काल निर्णय लेना हमारा प्रथम दायित्व है। क्यों की मैं ही बड़ा! मेरा कार्य बड़ा! ऐसे समझने वालो के लिये सेवामंडल में कोई स्थान नहीं हैं, ऐसा मैं मानता हूँ। सेवाभाव दिल में लेकर आओंगे तो यह भगवान का कार्य करने के तुम भागिदार बनोगे और केवल स्वार्थ परायणता का भाव लेकर यहाँ अपनी हुकुमत स्थापित करने के लिये आते हो तो यह श्रीगुरुदेव की शक्ति तुम्हे यहाँ टिकने नहीं देगी। याद रखो ! यह सेवामंडल आडकोजी बाबा की असीम कृपासे और समस्त मानव कल्याण में अपना जीवन समाप्त कर चुके उन साधु, संत, ऋषीमूनी और देव देवताओंका आशीर्वाद लेकर उदीत हुआ एक सूर्योदय है।

हमारे स्वार्थताका भाव हमें अंतमें अपने ही सर्वनाश का कारण बनता हैं। क्यों की। सेवामंडल सर्वभूतहितेरतः यह ध्येय लेकर अवतीर्ण हुआ हैं। जबतक यहाँ के प्रत्येक सेवक में मानव कल्याण की कामना का भाव प्रकट नहीं होता तो मैं उसे सेवामंडल का प्रचारक नहीं मानता। लेकिन एक समय ऐसा भी आयेंगा की दुषित लोगों का एक गुट बनेगा जो इस सेवामंडल में अपनी मालकियत साबीत करने के लिये भरसक प्रयास करेंगा। जिसमें सदैव पदो की लालसा हो, अन्य व्यक्ती के प्रती इर्षा, हिनता और उसे खतम करने की भावना सदैव पनपती हो ऐसा ही व्यक्ती इस गुट का नेतृत्व करेंगा और वह हमेशा इस मंडल के कार्यमें अपना हस्तक्षेप करने का या इसे बदनाम करने का प्रयास करते रहेंगा। यह परिस्थिती आये दिनो मंडल में होती रहेंगी। ख्याल रखो। गुरुकुंज आश्रम इस प्रमुख केंद्र के कार्यको मिटाने की मनिषा रखनेवाले और इसको कोसनेवाले और विरोध करनेवाले परम् हितैषी अपना भला नहीं कर सकेंगे और खुद ही खुदका सर्वनाश कर बैठेंगे। हमारी यह संस्था कोई राजनितीका अखाडा नहीं। यह संस्था केवल इलेक्शनबाजीके लिये नही बनी हैं। इसका यह निर्वाचन केवल इस संस्था के भौतिक व्यवस्था के लिये है। प्रशासकीय व्यवस्था के लिये कुछ सेवकोंको इसके निर्वाचन के माध्यमसे दायित्व दिया जाता है।

मै! आशा करता हूँ, कि आप सभी सेवक मंडल के हितैषी यह सेवाभाव दिलमें लेकर कार्य करे। अपनी सारी विकृत भावनाओको त्यागकर सेवामंडल के सच्चे स्वयं प्रकाशी सेवक बने। मैं तो कहता हूँ दास होने का प्रयत्न करे। इसीलिये मैंने रामभक्त हनुमानजी की फोटो गुरुकुंज आश्रम के प्रार्थना मंदिर में लगायी हैं जो हमे सदैव कहती है-‘सेवा हो धन हमारा। संतोष मन हमारा।।’ गुरुदेव की आज्ञा को मानना उसपर अमल करना ही हमारा धर्म हैं। अपने मन की मलिनता को व्यष्टी से लेकर समष्टी में विलिन कर हमे अमर होना हैं। अंतमे उस परमतत्व श्रीगुरुदेव मे विलिन होना हैं।

– तुकड्यादास

 

प्रकाशक-अखिल भारतीय श्रीगुरुदेव सेवा मंडळ गुरुकुंज आश्रम जि. अमरावती

 

 

 

संकलन – राजेंद्र मोहितकर गुरुजी चिमूर, जीवन प्रचारक गुरुकुंज आश्रम