ये देश है या माफियाओं का राजनीतिक तंत्र?

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माफिया केंद्र को चला रहा है या फिर केंद्र माफियाओं के सहारे चल रहा है, कुछ कह पाना मुश्किल है। देश और विदेश से सामने आयी दो सूचनाओं ने न केवल एक गणतंत्र के रूप में भारत की पहचान को शर्मसार किया है, बल्कि भारत की 70 सालों की आधुनिक लोकतांत्रिक विरासत को भी कलंकित कर दिया है।

यह भारत के चेहरे पर ऐसा बदनुमा दाग बनने जा रहा है, जिसे अगले कई दशकों तक देश के लिए मिटा पाना मुश्किल होगा और पूरे मुल्क के एक ऐसे देश की श्रेणी में खड़े हो जाने का खतरा है, जिससे उबरने में उसे सैकड़ों साल लग सकते हैं।

क्या आपने कभी सुना है कि कोई सरकार और उसके राजनयिक देश के माफियाओं के साथ मिलकर विदेशों में तमाम आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं?

यह आरोप कनाडा ने लगाया है। वहां के प्रधानमंत्री ट्रूडो और उसकी एक मंत्री ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके भारत के कनाडा में राजदूत रहे संजय वर्मा समेत छह राजनयिकों की राजनयिक प्रतिरक्षा खत्म कर उन्हें पूछताछ के लिए कनाडा के हवाले करने की मांग की है, क्योंकि उनके मुताबिक खालिस्तान समर्थक निज्जर की हत्या के मामले में ये सभी पर्सन ऑफ द इंटरेस्ट हैं। भारत सरकार द्वारा ऐसा नहीं करने पर कनाडा ने इन सभी को अपने देश से निकालने का फरमान जारी कर दिया है।

हालांकि भारत सरकार ने न केवल कनाडा के आरोपों को खारिज कर दिया है, बल्कि उसी तर्ज पर भारत स्थित कनाडाई दूतावास के छह राजनयिकों को भी देश से निकाल दिया है।

लेकिन यह सब करने के बाद भी आरोपों से निजात नहीं मिल जाती। यह मामला इसलिए और ज्यादा गंभीर हो जाता है, क्योंकि कनाडा ने ये सारी खुफिया सूचनाएं इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ भी साझा की है, जो फाइव आईज के देश हैं और जिनका आपस में खुफिया सूचनाओं के साझा करने की परंपरा के साथ आपसी कानून है। उसी का नतीजा है कि इंग्लैंड और अमेरिका समेत सभी देशों ने भारत से इस मामले में कनाडा के साथ सहयोग करने की अपेक्षा की है।

और इस मामले में अगर कनाडा के साथ रिश्ते कमजोर होते हैं, तो उसका सीधा असर बाकी के इन देशों पर भी पड़ेगा। और वैसे तो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में जो थू-थू होगी, उसका तो कोई हिसाब ही नहीं।

आरोपों के मामले में कनाडा केवल राजनयिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि उसने तो यहां तक कह दिया है कि इन सब आपराधिक कार्रवाइयों के पीछे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह थे। अब इससे बड़ा संगीन खुलासा और क्या हो सकता है? और अगर जांच का कोई मामला बढ़ता है, तो निश्चित तौर पर उसके घेरे में देश के गृहमंत्री होंगे।

इसी तरह से पन्नू की हत्या की साजिश के मामले की अमेरिकी एजेंसियां भी जांच कर रही हैं और उन्होंने भारतीय एजेंसियों की एक टीम के साथ काम करना शुरू कर दिया है। इस मामले में भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी का नाम सामने आ गया है।

एक शख्स पहले से ही अमेरिका में गिरफ्तार हो चुका है और उससे पूछताछ की जा रही है। यहां तक कि अमेरिका की एक स्थानीय कोर्ट में अजीत डोभाल के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चुका है और उसमें पेशी के लिए डोभाल के खिलाफ समन तक जारी हो चुका है।

यही वजह है कि अभी हाल की अमेरिकी यात्रा में पीएम मोदी के साथ अजीत डोभाल नहीं गए थे। इस मामले में जांच के लिए जो भारतीय एजेंसी बनी है, उसकी अगुआई एक दूसरे डिप्टी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कर रहे हैं।

अब अगर कनाडा और अमेरिका की ये दोनों जांचें एक नतीजे पर पहुंचती हैं और उसमें यह बात सामने आती है कि भारत सरकार और उसकी न केवल एजेंसियां, बल्कि राजनयिक और राजनीतिक तंत्र तक इस पूरी आपराधिक कार्रवाई में शामिल हैं, तो देश की सरकार को क्या कहीं चेहरा छुपाने की जगह मिलेगी? कनाडा ने तो बाकायदा बिश्नोई गैंग का नाम लेकर बता दिया है कि भारत का राजनीतिक तंत्र कनाडा में कनाडाई नागरिकों की हत्या के लिए उसका इस्तेमाल कर रहा है।

और 70 सालों के भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार ये बात सामने आ रही है, जब भारतीय राजनयिकों पर इस तरह से किसी माफिया गैंग के साथ मिलकर काम करने का आरोप लग रहा है।

यह बात सही है कि भारतीय खुफिया एजेंसियों से उनके रिश्ते होते हैं और उनके साथ मिलकर वह देश हो या फिर विदेश की धरती, सब जगहों पर काम करते हैं। लेकिन अभी तक किसी माफिया के साथ इस तरह से काम करने का आरोप नहीं लगा है।

मामला विदेश तक सीमित रहता, तो भी कोई बात होती। देश के भीतर से भी जो सूचनाएं आ रही हैं, वह बेहद खतरनाक हैं। और अगर ये सही हैं, तो फिर भारतीय राज्य तंत्र के माफिया तंत्र में बदल जाने का खतरा बिल्कुल सामने है। महाराष्ट्र के एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के मामले की जिम्मेदारी उसी बिश्नोई गैंग ने ली है, जिसके ऊपर कनाडा सरकार ने आरोप लगाया है।

इसी बिश्नोई गैंग ने मशहूर पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या की भी जिम्मेदारी ली थी। और पिछले दिनों जिस तरह से अभिनेता सलमान खान के घर पर हमले के दो प्रयास हुए थे, उसके पीछे भी इसी बिश्नोई गैंग का हाथ बताया जा रहा है।

और जिस तरह की सूचनाएं सामने आ रही हैं उससे लग रहा है कि इस बिश्नोई गैंग को केंद्र सरकार का खुला संरक्षण है, क्योंकि कई सालों से जेल में बंद इसके मुखिया लारेंस बिश्नोई को तिहाड़ जेल से अहमदाबाद के साबरमती जेल में शिफ्ट कर दिया गया है।

और चाहे पिछले दिनों सलमान खान पर हमले का मामला रहा हो या फिर मौजूदा बाबा सिद्दीकी की हत्या की जांच का मामला, उनकी जांच करने वाली एजेंसियों की मांग के बावजूद उसे मुंबई पुलिस को नहीं सौंपा जा रहा है। इसके पीछे, बताया जा रहा है कि, एक कानूनी धारा आड़े आ रही है, जिसमें सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय शामिल है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 268 ए के तहत उसे संरक्षित कर दिया गया है, जिसके मुताबिक उसकी जान को खतरा है और उसे साबरमती जेल से बाहर कहीं दूसरी जगह नहीं ले जाया जा सकता है।

इस देश के भीतर जान का खतरा तो तमाम बड़े नेताओं को है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां उन्हें कहीं भी आने-जाने से नहीं रोक रही हैं। लेकिन एक माफिया की कीमत उन नेताओं से भी ज्यादा बढ़ गयी है और उसकी जान की रक्षा केंद्र सरकार के लिए कितनी जरूरी है, यह इस वाकये से समझी जा सकती है।

दिलचस्प बात यह है कि लारेंस बिश्नोई को कहीं और नहीं केवल और केवल गुजरात की एक जेल में रखा गया है, तो उसके पीछे के इशारे को भी समझा जा सकता है।

इस बीच बताया जा रहा है कि बिश्नोई गैंग जेल से ही सारी बाहरी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। जितना सुरक्षित होकर वह बाहर से भी काम नहीं कर सकता था, उससे ज्यादा सुरक्षित होकर वह जेल के भीतर से काम कर रहा है। एक तरह से उसे राजनयिक इम्यूनिटी मिल गयी है, क्योंकि जेल में रहते उसके ऊपर किसी तरह का आरोप भी नहीं लगेगा, क्योंकि यह माना जाता है कि जेल में रहते कोई इस तरह का काम नहीं कर सकता है।

अब थोड़ा बिश्नोई गैंग और उसके मुखिया पर भी नजर डाल लें। बिश्नोई गैंग का मुखिया लारेंस बिश्नोई है, जो पंजाब का रहने वाला है। बिश्नोई का परिवार बेहद समृद्ध है और उसके पास बताया जा रहा है कि 100 एकड़ तक जमीन है। 31 वर्षीय बिश्नोई हाईस्कूल के बाद पढ़ने के लिए चंडीगढ़ चला गया था। वहां उसकी इच्छा कानून की पढ़ाई करने की थी। इसी बीच डीएवी में पढ़ते हुए उसने छात्रसंघ के चुनावों में हिस्सा लिया और जीता भी।

इस दौरान उसकी वहां काम करने वाले कुछ स्थानीय गैंगों से दुश्मनी हो गयी और फिर वह अपराध की तरफ मुड़ गया। और फिर उस रास्ते पर जो आगे बढ़ा, तो बताया जा रहा है कि इस समय उसके पास 700 लोगों का नेटवर्क है।

बिश्नोई समाज से आने के चलते हिरणों के प्रति उसका बहुत ज्यादा प्यार है। कहा जा रहा है कि इसी वजह से सलमान खान उसके निशाने पर हैं। आपको याद होगा कि राजस्थान में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान सलमान खान के हाथ से एक हिरण की मौत हो गयी थी और राजस्थान का पूरा बिश्नोई समाज उनके खिलाफ उठ खड़ा हुआ था और वह मामला भी अदालत में बहुत सालों तक चला था।

बहरहाल यह कितना हिरण और बिश्नोई समाज की भावनाओं से जुड़ा है, यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन बॉलीवुड में जिस तरह से पिछले दिनों खान बंधुओं की ताकत को कमजोर कर हिंदू अभिनेताओं को मजबूत करने का पूरा सरकारी अभियान चलाया गया था, उसमें सरकार एक हद तक नाकाम रही।

अक्षय कुमार और विवेक ओबेराय जैसे कुछ चेहरे, जो आगे किए गए थे, वो औंधे मुंह गिर गए और सलमान समेत दूसरे खानों की सत्ता चलती रही। यह बात केंद्र का निजाम नहीं पचा पा रहा है। लिहाजा अब एक दूसरा रास्ता अपनाया गया है, जिसके तहत इनको कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।

पिछले दिनों सलमान खान के घर पर हुए हमले को इसी के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है। बाबा सिद्दीकी की हत्या भी उसी का एक हिस्सा है। ऐसा माना जा रहा है कि डराने से लेकर सलमान खान को हर तरीके से कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। उसी नजरिये से सलमान खान के इर्द-गिर्द के सारे सपोर्ट बेस को खत्म किया जा रहा है।

यह अनायास नहीं है कि लारेंस बिश्नोई ने एक बयान दिया है, जिसमें कहा गया है कि उसकी किसी से भी दुश्मनी नहीं है, लेकिन सलमान खान के इर्द-गिर्द रहने वालों को ज़रूर सतर्क रहना चाहिए। ऐसे में उसके मकसद को समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं है।

तो जैसा कि मैंने ऊपर कहा था कि माफिया केंद्र को चला रहा है या फिर केंद्र उसके सहारे चल रहा है। देश हो या फिर विदेश की धरती, दोनों जगहों पर सरकार के साथ माफिया नाभि-नालबद्ध हैं और यह तस्वीर किसी भी आधुनिक और सभ्य राष्ट्र के लिए अच्छी नहीं है।

यह बताती है कि देश और समाज के स्तर पर ही नहीं बल्कि सभ्यता के स्तर पर मुल्क, पतन के एक नये दौर में पहुंच गया है। अगर समय रहते देश को इससे निकाला नहीं गया, तो नतीजे बेहद भयावह होंगे।

*(आलेख : महेंद्र मिश्र)*
*(महेंद्र मिश्र ‘जनचौक’ के संस्थापक संपादक हैं।)*