मोदी जी गलत नहीं कहते हैं। इन विरोधियों का बस चले, तो ये तो मोदी जी को कुछ करने ही नहीं दें। यहां तक कि बोलने भी नहीं दें, न टेलीप्राम्प्टर से और न उसके बिना। सिर्फ कुर्सी पर बैठाए रखें, अच्छे-अच्छे कपड़ों में सज-धज कर फोटो खिंचाने के लिए। बताइए, एप्पल वालों ने विपक्ष वालों के फोन में जासूस बैठाए जाने की जरा-सी चेतावनी क्या जारी कर दी, भाई लोगों ने इसी बात पर हंगामा खड़ा कर दिया। डेमोक्रेसी का मर्डर बता दिया। पब्लिक की जासूसी के राज का कायम होना बता दिया। संविधान में दिए गए अधिकारों का अंत और भी न जाने क्या-क्या बता दिया। और इल्जाम, बेचारी सरकार के सिर पर, सिर्फ इसलिए कि एप्पल के एलर्ट में बस इतना कहा गया था कि कोई सरकार का लहकाया हमला करने वाला आपके फोन में घुसने की कोशिश कर रहा था। सरकार का लहकाया कहने की देर थी कि भाई लोग पड़ गए सरकार के पीछे कि वही विपक्ष की जासूसी करा रही है।
पुराने-पुराने गड़े हुए मुर्दे उखाड़ लाए : पेगासस और न जाने क्या-क्या। बेचारे पेगासस की तो करीने से बनी कब्र ही उखेड़ डाली, जबकि उस पर तो देश की सबसे ऊंची अदालत ने बाकायदा कमेटी बनाकर मिट्टी डाली थी! कह रहे हैं कि पेगासस को तो जिंदा ही दफ्न करा दिया गया था, जबकि आखिर तक उसकी सांसें चल रही थीं। बेकसूर सिर्फ इसलिए मारा गया कि सरकार ने कह दिया — हम नहीं बताते। कमेटी ने कहा, ये बताने को तैयार नहीं हैं। कुछ पेगासस जैसा है तो, पर पेगासस है या नहीं है, जो बता सकते हैं, वह तो बताने को ही तैयार नहीं हैं। अदालत ने कहा — फिर जाने भी दो, जब वो बताने को ही तैयार नहीं हैं! खैर, न पेगासस में, न उसके दफन में और न आइफोन-एप्पल एलर्ट के मामले में, सरकार गलत थोड़े ही कह रही है कि उसने मणिपुर की तरह, कुछ भी किया ही नहीं है। फिर भी भाई लोग “बर्बाद कर दिया, तबाह कर दिया” का शोर मचा रहे हैं। मोदी जी इन्हें कैसे समझाएं कि बर्बाद करना तो क्रिया है। जब मोदी ने कुछ किया ही नहीं, फिर डेमोक्रेसी की कपाल क्रिया कैसे जी!
फिर मान लो कि मोदी जी की सरकार ने ही वाकई कुछ किया है। पेगासस के टैम पर भी किया था, इस बार भी किया है और दूसरे बहुत से ज्ञात-अज्ञात मामलों में भी किया है। विपक्ष वालों के फोन में और कई तो जो अब तक विपक्ष वाले नहीं हैं, पर कल की नहीं कह सकते हैं, उनके फोन में भी जासूस बैठाए हैं। तब भी इसमें इतने शोर मचाने की क्या बात है! आखिरकार, कोई बात-चीत सुन या देख या बाकी सामग्री पढ़ ही तो रहा है। आप का कुछ बिगाड़ तो नहीं रहा है। आप से कुछ छीन तो नहीं रहा है। और तो और, इस तक का ध्यान रख रहा है कि आपकी बातचीत में कोई खलल न पड़े। यह तो बस शेयरिंग है, एकदम निरामिष यानी हानिरहित। आज के टैम में जरा-जरा सी शेयरिंग के लिए लोग तरसते हैं और अकेलेपन के अवसाद का रोना रोते हैं। इसका भी ख्याल कर के मोदी जी मुफ्त शेयरिंग दिला रहे हैं और वह भी सचमुच एकदम मुफ्त, अस्सी करोड़ लोगों वाले मुफ्त राशन की तरह, जिसको ताजा-ताजा पांच साल का एक्सटेंशन भी मिल गया है। सच पूछो तो उससे भी ज्यादा मुफ्त, राशन कार्ड तक जरूरत से मुक्त — मांगे बिना ही।
फिर ये भी तो देखिए कि सुन-देख कौन रहा है? खुद सरकार। खुद माई-बाप। माई और बाप, दोनों। क्या माई-बाप को अपनी संतानों के फोन सुनने का भी हक नहीं है? यह पश्चिम नहीं, भारत है, दुनिया की प्राचीनतम सभ्यता। परिवार पहले आया, फोन बहुत बाद में। फोन-वोन के लिए मोदी जी से पश्चिम की नकल करने की उम्मीद कोई नहीं करे। इस मामले में निजता के अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता वगैरह की बड़ी-बड़ी दलीलें घुसाने की कोशिश तो कोई कत्तई नहीं करे। यह संतानों के अधिकार का नहीं, पेरेंटिंग का मामला है, जहां माई-बाप और बच्चों के हित एक हो जाते हैं। साफ है कि माई-बाप यह सुन-जान सकेंगे कि क्या चल रहा है, तभी तो बच्चों का सही तरह से मार्गदर्शन कर सकेंगे; उनकी अच्छी परवरिश कर सकेंगे। बच्चों के बारे में खुद ही अंधेरे में रहेंगे, तो माई-बाप बच्चों को कैसे सही रास्ते पर रखेंगे? यह किसी अधिकार-वधिकार की नहीं, जिम्मेदारी की बात है। उस पर अब तो कर्तव्य काल चल पड़ा है। मोदी जी ने बताया था, याद तो होगा या वह भी जुम्ला समझकर भूल गए। मोदी जी की सरकार अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकती है। अमृतकाल में तो हर्गिज नहीं, उसका तो दूसरा नाम ही कर्तव्य काल है।
इससे कोई यह न समझे कि विपक्ष वालों को मोदी जी के उनके फोन में घुसकर, माई-बाप का कर्तव्य पूरा करने में ही ऑब्जेक्शन है। विपक्ष वालों को तो मोदी जी कुछ भी करें, उसी में आब्जेक्शन हो जाता है। और तो और, मोदी जी कुछ नहीं करें, तब भी आब्जेक्शन हो जाता है। देखा नहीं, कैसे गाज़ा पर इस्राइल का हमला रुकवाने के लिए युद्ध विराम के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर तो मोदी जी ने न हां, न ना, कुछ भी नहीं किया था, तब भी भाई लोगों ने क्या कर दिया, कैसे कर दिया, चीख-चीखकर आसमान सिर पर उठा लिया। मोदी जी ने देश को भ्रष्टाचार-मुक्त करने के लिए सीबीआइ, ईडी वगैरह को चुनाव के टैम पर जरा सा तिकतिका दिया, केजरीवाल से लेकर बघेल तक, दो-चार मुख्यमंत्रियों के पीछे केंद्रीय एजेंसियों को लगा दिया, तो देखा नहीं विपक्षी क्या करते हैं, ‘ऐसा कैसे कर सकते हैं’ का कितना शोर मचा रहे हैं। और इतना शोर सिर्फ इसलिए कि ईडी वगैरह विपक्ष वालों पर ही कार्रवाई कर रही हैं। अरे इतना बड़ा हमारा देश है, इतना महान तथा विस्तृत हमारा भ्रष्टाचार है, सारा का सारा भ्रष्टाचार एक साथ थोड़े ही मिटा सकते हैं। अब मोदी जी की तरह जिसने मिटाने की ठान ली है, वह भी कहीं से तो शुरूआत करेगा। आयेगा, देख लेना एक दिन गैर-विपक्ष वालों का भी नंबर आएगा अगर तब तक उन्होंने खुद ही खुद को भ्रष्टाचार मुक्त नहीं कर लिया तो। मोदी जी की ईमानदारी का ताप न पक्ष का, न विपक्ष का, कोई भी भ्रष्टाचार करने वाला सहन नहीं कर पाएगा। पर पहले मोदी जी विपक्ष का भ्रष्टाचार तो मिटा लें; ईडी-सीबीआइ वगैरह की तलवार चलाने की प्रेक्टिस तो करा लें। रही न्यूजक्लिक की बात तो उसका नंबर और भी पहले आ गया, ताकि मोदी जी जब विपक्ष वाला भ्रष्टाचार मिटाएं, तो विरोधियों का शोर सुनकर लोग बेचारी सरकार के हाथ पकडऩे के लिए न इकट्ठे हो जाएं।
✒️व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)