आम चुनाव से ठीक पहले के विधानसभाई चुनावों के चक्र मेें प्रभावशाली जीत के बाद, भाजपा ने इन चुनावों को सिर्फ सेमीफाइनल ही नहीं, उससे आगे बढक़र एक प्रकार से फाइनल भी कहना शुरू कर दिया है। मतगणना के ही दिन, 3 अक्टूबर को देर शाम, नई-दिल्ली में भाजपा के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित विजय सभा में अपने संबोधन में खुद प्रधानमंत्री ने जिस तरह तीन राज्यों की जीत को, 2024 के चुनाव की (जीत की) गारंटी बताया है, इसी का इशारा करता है। आने वाले दिनों में बार-बार चुनाव के इस चक्र की जीत को, 2024 के चुनाव में मोदी की शानदार जीत का संकेतक साबित करने की कोशिश नहीं की जा रही हो, तभी हैरानी की बात होगी। बहरहाल, इस संदर्भ में, संक्षेप में यह याद दिला देना उपयोगी रहेगा कि इस चक्र के नतीजे और उसमें भी खासतौर पर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों –राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़– के नतीजे, ठीक-ठीक क्या कहते हैं और क्या नहीं कहते हैं।
यह निर्विवाद है कि इस चुनाव में तीनों हिंदीभाषी राज्यों में भाजपा को जोरदार जीत हासिल हुई है और आम तौर पर विपक्ष को और खासतौर पर कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है। भाजपा ने 2018 के चुनाव के इसी चक्र के नतीजों को पूरी तरह से पलटते हुए, इन तीनों राज्यों में दोबारा सत्ता पर कब्जा ही नहीं कर लिया है, उस मध्य प्रदेश में भी उसने शानदार जीत दर्ज करायी है, जहां 2018 की हार के करीब डेढ़ साल बाद, दलबदल के जरिए उसने फिर से सत्ता हासिल कर ली थी और इस तरह इस बार चुनाव के समय उसकी ही सरकार थी। इस तरह, भाजपा ने इन तीन राज्यों में अपनी राज्य सरकारों की संख्या एक से बढ़ाकर तीन ही नहीं कर ली है, उसने सारे पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए मध्य प्रदेश में अपनी सीटों की संख्या में, 2018 के मुकाबले 54 की बढ़ोतरी कर, 163 सीटें हासिल कर ली हैं और छत्तीसगढ़ में अपनी सीटों में 39 की बढ़ोतरी कर, कुल 54 सीटों पर कब्जा कर लिया है। राजस्थान में भी, बहुत अप्रत्याशित नहीं होते हुए भी, उसने अपनी सीटों में 42 की बढ़ोतरी कर, कुल 115 सीटों पर जीत दर्ज करायी है, जिसे प्रभावशाली बहुमत तो जरूर कहा जाएगा।
लेकिन, इतना ही नहीं है। मध्य प्रदेश में भाजपा ने अपने मत फीसद में 7.5 फीसद की बढ़ोतरी के साथ, कुल 48.6 फीसद वोट हासिल किए हैं। इसी प्रकार, छत्तीसगढ़ में उसने 13.3 फीसद की बढ़ोतरी के साथ, 46.3 फीसद वोट हासिल किए हैं। यहां तक कि राजस्थान में भी उसने 2.9 फीसद की बढ़ोतरी के साथ कुल 41.7 फीसद वोट हासिल किए हैं। छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में मत फीसद में भारी बढ़ोतरी और राजस्थान में भी कुछ बढ़ोतरी का, 2024 के चुनाव के लिए एक स्पष्ट संकेत है, जो किसी को भी नहीं भूलना चाहिए। भाजपा हिंदीभाषी क्षेत्र में अब भी अपना वोट बढ़ा पा रही है और मोटे तौर पर उसका वोट 45 फीसद के करीब तक पहुंच गया है।
दूसरी ओर, इस चुनाव में आमतौर पर विपक्ष के और खासतौर पर कांग्रेस के हाथों से दो राज्यों –राजस्थान और छत्तीसगढ़– की सत्ता चली गयी है। यह धक्का इसलिए और भी बड़ा है कि इसके बाद कांग्रेस के पास बिहार में महागठबंधन सरकार में हिस्सेदारी के अलावा, हिंदीभाषी क्षेत्र में सिर्फ हिमाचल की सरकार रह गयी है। इसी प्रकार, मध्य प्रदेश मेें कांग्रेस पिछले चुनाव के मुकाबले 48 सीटें गंवाकर मात्र 66 सीटों पर आ गयी है, जबकि छत्तीसगढ़ में 33 सीटें गंवाकर 35 पर और राजस्थान में 31 सीटें गंवाकर, 70 पर ही सिमट गयी है। धक्का बेशक बड़ा है। इसके बावजूद, यह नहीं भूलना चाहिए कि चुनाव नतीजों से आम तौर पर जल्दी में जो नतीजा निकाल लिया गया है और धारणा बना ली गयी है उसके विपरीत, 2018 के चुनाव के मुकाबले जब इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, इस चुनाव में भी कांग्रेस ने अपना वोट कमोबेश बनाए ही रखा है। मध्य प्रदेश की जबर्दस्त हार के बावजूद, कांग्रेस के वोट में सिर्फ 0.5 फीसद की कमी हुई है और उसने 40.4 फीसद वोट हासिल किए हैं, जबकि राजस्थान में उसके वोट में 0.1 फीसद की मामूली बढ़ोतरी ही हुई और उसकी झोली में 39.7 फीसद वोट आए हैैं। छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के वोट में 0.8 फीसद की कमी हुई है और उसके हिस्से में 42.2 फीसद वोट आए हैं।
कहने की जरूरत नहीं है कि इन तीनों राज्यों में भाजपा के वोट में जो भी बढ़ोतरी हुई है (जो मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में भारी बढ़ोतरी कही जाएगी) और उसकी सीटों में उससे भी बढ़कर जो बढ़ोतरी हुई है, उसके पीछे ‘‘अन्य’’ राजनीतिक खिलाडिय़ों के निचोड़े जाने की ही कहानी है। मध्य प्रदेश में अन्य के खाते में, जिसमें बसपा, सपा तथा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी शामिल हैं, वोट पूरे 7 फीसद घटकर 11 फीसद पर आ गया और सीटें 6 की कमी के साथ सिर्फ 1 पर आ गयीं। इसी प्रकार, छत्तीसगढ़ में इस श्रेणी का मत फीसद पूरे 12.5 फीसद की गिरावट के साथ 11.5 फीसद पर ही आ गया और सीटों का आंकड़ा 6 की कमी के साथ सिर्फ 1 पर। इसमें सपा, बसपा, गोंगपा आदि के अलावा अजीत जोगी की पार्टी भी शामिल थी। राजस्थान में ही अन्य के वोट में 3 फीसद की अपेक्षाकृत थोड़ी कमी ही आयी है, हालांकि इस श्रेणी में शामिल पार्टियों की सीटों की संख्या पूरे 12 की कमी के साथ, 14 पर आ गयी है। इस तरह, मोटे तौर पर अन्य की श्रेणी में आने वाली राजनीतिक ताकतों की कीमत पर ही भाजपा ने इस चुनाव में अपनी प्रभावशाली जीत दर्ज करायी है।
इन चुनावों में भाजपा की जीत और कांग्रेस व विपक्ष की हार की गंभीरता को कम नहीं करते हुए भी, इन नतीजों से एक बात आसानी से समझी जा सकती है। इन राज्यों के नतीजों के संदर्भ से, 2024 के आम चुनाव के नतीजे की गारंटी कोई नहीं कर सकता है। बेशक, इस चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी रहा है और पर्याप्त भारी रहा है, लेकिन यह भी सच है कि तीनों राज्यों में उसके सामने मुकाबले के लिए एक अच्छी-खासी ताकत थी। और यह ताकत, जो 2018 से 2023 के बीच के पांच सालों में लगभग जस की तस बनी रही है, अगले चुनाव तक भी आसानी से इधर-उधर होने नहीं जा रही है। इतना ही बड़ा सच यह भी है कि भाजपा का वोट 45 फीसद के करीब तक पहुंचने के बावजूद, अब भी वोट का स्पष्ट बहुमत उसकी पकड़ से बाहर है। और महत्वपूर्ण बात यह है कि एक मजबूत कोर भी मौजूद है, जिसके गिर्द यह गैर-भाजपा वोट जमा हो सकता है। और अगर यह वोट एक जगह जमा हो जाए, तो हिंदी पट्टी में भी भाजपा को पछाड़ा जा सकता है। शेष भारत को मिलाकर उसे पछाडऩा तो और भी आसान होना चाहिए, क्योंकि तेलंगाना के हाल के नतीजों से साफ है कि दक्षिण और पूर्व (उत्तर-पूर्व से भिन्न) पूरी तरह से पहले ही उसके दबदबे से बाहर हैं।
यहीं इंडिया मंच महत्वपूर्ण हो जाता है। लेकिन, उसे इन चुनावों से कुछ जरूरी सबक सीखने होंगे। सबसे जरूरी सबक तो यही है कि भाजपाविरोधी ताकतों की एकजुटता किसी भी कीमत पर कायम होनी ही चाहिए। इन विधानसभाई चुनावों से नकारात्मक सबक लेने ही होंगे। बेशक, यह कसरत भी दिलचस्प हो सकती है कि इंडिया के संभावित सहयोगियों के वोट का एक साथ पड़ना, इस चुनाव में भी भाजपा को कितनी सीटें भेंट करने से बचा सकता था। ऐसी सीटों की संख्या अच्छी-खासी होगी। उम्मीद है कि इन चुनावों की पृष्ठभूमि में होने वाली इंडिया की पहली बैठक से ही, गठबंधन की सिलवटों को दूर करने के लिए गंभीरता से काम शुरू होगा। यही नहीं, इंडिया के साथ खड़ी ताकतों के दायरे को अधिकतम फैलाने के और नागरिक-सामाजिक संगठनों तथा ऐसी ही तमाम ताकतों को साथ लाने के सक्रिय प्रयास करने होंगे। दूसरा महत्वपूर्ण सबक यह होना चाहिए कि विपक्ष का नैरेटिव पूरी तरह से बेअसर तो नहीं है, पर उसे जनता की जिंदगी के वास्तविक मुद्दों से जोड़कर और धारदार और असरदार बनाए जाने की जरूरत है, जिससे मोदी राज की वैधता को चुनौती दी जा सके और उसे जनता के सामने बेनकाब किया जा सके।
आम चुनाव तक के चार-पांच महीने का समय इस सबके लिए बहुत थोड़ा भी नहीं है। अपनी मुंबई बैठक के फौरन बाद इंडिया गठबंधन जिस तरह से गति पकड़ रहा था, उस गति को दोबारा लाया जा सकता है, लाना ही होगा। विधानसभा चुनाव के इस चक्र का सबक यह भी है कि 2024 के चुनाव में, मोदी मैजिक के वास्तविक मुुकाबले की स्थितियां बनाना इतना मुश्किल भी नहीं है। जीत की ये हैट्रिक अपनी जगह, 2024 में मोदी के आने की कोई गारंटी नहीं है।
*(आलेख : राजेंद्र शर्मा)*
*(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*