जब भगवान गौण और कामसुख प्रमुख हो जाता है तब विपत्ती आती है।-मुरलीमनोहर व्यास का चिंतन

35
Advertisements

 

चंद्रपूर -जब जीवन में भगवान और भक्ति गौण हो जाती है और धन, भोग, कामसुख, सांसारिक प्रपंच आदि प्रमुख हो जाते है, तभी जीवन में शकटासुर अर्थात विपत्ती आती है। संसार सुख की गाडी के नीचे जो श्रीकृष्ण को रखते है उनकी गाडी को श्रीकृष्ण ठोकर मार कर सांसारिक सुखोपभोग को छिन्न भिन्न कर देते हैं। जीवन में भगवान मुख्य हो तब जीवन की गाडी सीधी आनंदानुभूती के साथ चलती है, ऐसे विचार चंद्रपुर के आध्यात्मिक चिंतक तथा साहित्यकार मुरलीमनोहर व्यास ने प्रतिपादित किये।
श्री गोवर्धननाथ हवेली चंद्रपुर में गुरुवार 29 अगस्त अजा एकादशी के दिन सत्संग समारोह में आप बोल रहे थे। प्रत्येक एकादशी के दिन संध्या 5 – 30 बजे सत्संग आयोजित किया जाता है।
भगवान बालकृष्ण की शकट भंजन लीला के संदर्भ में चर्चा करते हुए व्यासजी ने कहा, हमारी संस्कृति उत्सवों की संस्कृति है। जीवन में होनेवाली छोटी – छोटी घटनाओं में आनंद लेने के लिए प्रयास करना चाहिए।
ज़ब बालकृष्ण ने पहली बार करवट बदली तब नंद यशोदाजी ने उत्सव मनाया। लोगों की आव भगत के लिए यशोदाजी ने बालकृष्ण को शकट अर्थात लकडी की गाड़ी के निचे सुला दिया। उसी वक़्त कंस का भेजा हुआ शकटासुर कृष्ण को मारने के लिए आया। वह वायु रुप था।
शकटासुर अर्थात जडता, अभिमान, अहंकार। शकट मतलब गाडी, यह जड वस्तु है।
अभिमानी, अहंकारी व्यक्ति भगवान के ईश्वरत्व को मान्य नही करते। भगवान का भी उपहास व्यंग करते हैं। शकटासुर भी बालकृष्ण के ईश्वरत्व से अनभिज्ञ होकर श्रीकृष्ण को मारने आया, लेकिन बालकृष्ण का पदस्पर्श होते ही उसकी जडता नष्ट हो गयी। गाडी उलट गयी, उसमें रखा हुआ सामान बिखर गया।
शकटासुर अनंग था , अर्थात वायू रुप था। उसके वायू रुप होने का कारण बताते हूये व्यासजी ने कहा, उत्कच नाम का एक दैत्य था। वह बलवान होने के कारण अभिमानी और उद्दंड था। एक दिन उसने लोमश ऋषि के आश्रम में उत्पाद मचाया। वन उजाड दिया। ऋषि ने उसे अनंग होने का श्राप दिया। शरीर गलने लगा तब घबरा कर ऋषि की क्षमा मांगी। ऋषि ने कहा द्वापर युग के अंत में भगवान श्रीकृष्ण के पद स्पर्श होने पर तेरा कल्याण होंगा। वही उत्कच शकटासुर बनकर आया।
व्यासजी ने कहा भगवान श्रीकृष्ण की लीलायें अद्भूत तथा गुढ है। माता यशोदाजी ने बालकृष्ण को उत्सव के लिए आनेवाले लोगों की आवभगत के लिए भवन के बाहर गाडी के नीचे सुलाया । अतिथी सेवा धर्म है, परंतु जहाँ भगवान का कार्य हो वहां इस बात का ध्यान रखना चाहिए की भगवान की सेवा में कोई कमी न रहे। परिवार के उत्सव आदि में भगवान की सेवा प्रणाली व्यवस्थित होनी चाहिए। भगवान को भुल जाओंगे तो संकट आ सकता है। भक्ति में अहंकार बाधक है। जीवन में अहंकार नही आवें इसके लिए सचेत रहना आवश्यक है।