महान क्रांतिकारी शूरवीर मनीराम अहिरवार ने आजादी में अमूल्य योगदान दिया फिर उनको शहीद का दर्जा क्यों नहीं : एम. डी. किरार

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भोपाल। अनुसूचित जाति और जनजाति वर्गों के महान क्रांतिकारियों ने देश की आजादी में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। अपने घर परिवार की कोई चिंता न कर परिवार के सदस्यों को उनकी हालतों पर छोड़ दिया। वह केवल अपने वतन को आजाद कराने का जूनून लेकर स्वतंत्रता के आंदोलन में जान की बाजी लगा कर अपना सर्वस्व न्योछावर करने की मंशा से अंग्रेजों को घुटने के बल देश छोड़ने को मजबूर कर दिया था।
अमर शहीद वीर मनीराम अहिरवार संघर्ष समिति मध्यप्रदेश के वरिष्ठ मार्गदर्शक जो कि पूर्व सहायक संचालक आदिवासी शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश शासन रहे। जिन्होंने अनुसूचित जाति और जनजाति वर्गों के महापुरुषों के द्वारा आजादी में योगदान देने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और शहीदों के बारे में गहन अध्ययन व शौध करके उनकी जानकारी समय समय पर सरकार को अवगत कराते रहे है कि न सिर्फ एक वर्ग बिशेष ने आजादी में भाग लिया अपितु सभी जाति सम्प्रदाय व समुदाय के लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाई तब जाकर देश आजाद हुआ। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि महत्व व सम्मान केवल किसी एक दो वर्ग को दिया गया जो कि दूसरे वर्ग के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ और उस कौम के साथ अन्याय किया है।

श्री किरार जी ने कहा है कि हमारे देश की आजादी में मध्यप्रदेश के जिला नरसिंहपुर तहसील गाडरवारा के नगर चीचली के गौड़ीय राज था। जहां के राजा श्री विजय बहादुर एक बड़े यस्शवी राजा थे, जिन्होंने नरसिंहपुर क्षेत्र की स्थापना उनके राज्य चिन्ह सिंह के नाम पर चीचली स्टेट सन 1802 . 1836 में गाडरवारा कस्बा नरसिंहपुर बसाया था। जिनके साथ ही मेधोनिया परिवार जो कि अहिरवार जाति के नाम मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति के के अन्तर्गत आता है। गौड़ीय राजा अपने साथ वीर मनीराम को बड़े भाई श्री छोटेलाल एवं भगवत उर्फ गूनंऊ को साथ लेकर चीचली में आकर बसें थे। यह परिवार बहुत ही बहादुर व बफादार था जो कि देश, राज्य और अपने स्वाभिमान के साथ जीने मरने वाला था।
चीचली स्टेट के राजा श्री विजय बहादुर जी के निधन होने के पश्चात उनके नाबालिग श्री शंकर प्रताप सिंह जू देव उन दिनों शिक्षा दीक्षा ले रहे थे। राजमहल की सुरक्षा की सम्पूर्ण जबाबदारी वीर मनीराम जी संभाल रहे थे। उसी समय सन 1942 में अंग्रेजों भारत छोडो़ महा आंदोलन महात्मा गॉंधी चला रहे थे। जिसे आंदोलन से मनीराम और उनका परिवार प्रभावित था। भगवत उर्फ गुन्ऊ देश की सेना में जा चुके थे। जो बाद में लौट के नही आये। मनीराम अहिरवार के बड़े भाई श्री छोटेलाल का निधन होने पर मनीराम अहिरवार पर गौड़ महल की रक्षा के साथ अपने परिवार को पालना व देखभाल भी करनी थी कि राजा विहीन गौड़ महल को लूटने के उद्देश्य से दिनांक 23 अगस्त 19 42 को अंग्रेजों की एक सेना चीचली आई, जिसे मनीराम जी ने पहले महल की ओर आने से रोका नहीं रुकने पर अंग्रेजों और मनीराम जी के बीच भीषण युद्ध हुआ।

इस युद्ध में मनीराम जी के दो साथीयों की शहादत हुई। मनीराम जी ने अंग्रेजों को घायल कर गांव से खदेड़ कर विजय श्री प्राप्त की। ऐसे महान क्रांतिकारी वीर मनीराम अहिरवार जी को देश आजाद होने के पश्चात जो भी सरकार बनी उन्होंने अनदेखी की और स्थानीय जातिगत भेदभाव करने वालों की सोच के कारण मध्यप्रदेश के एक महान शूरवीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जिन्हें बाद में अंग्रेजों ने धोका देकर पकड़ा व जिनकी गिरफ्तारी रिकार्ड में दर्ज न कर अपने गुप्त जेल ले जाकर कठोर यातनाएं देकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। जिस महान क्रांतिकारी वीर मनीराम अहिरवार को शहीद का दर्जा न देना सम्पूर्ण अनुसूचित जाति के साथ धोखाधड़ी कर अन्याय है।

मुझे यह कहने में गर्व हो रहा है कि आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान भूले बिसरे शहीदों की खोज में नरसिंहपुर के वीर शहीद का नाम मुख्य रूप से सभी विद्वानों ने, उजागर कर मांग की थी कि ऐसे महान क्रांतिकारी को शहीद का दर्जा प्रदान कर उनके जन्म स्थान पर भव्य मूर्ति, भवन, स्मारक और शहीद परिवार की सहायता, सुविधा के साथ ही शासन द्वारा जो शहीद परिवारों का सम्मान दिया जाता रहा है वह वीर मनीराम अहिरवार जी के परिवार को देकर अनुसूचित जाति वर्ग को गौरवान्वित किया जाये। लेकिन अभी तक शहीद की उपेक्षा होना देश के अनुसूचित जाति वर्गों के लिए आश्चर्य की बात है कि सभी को सम्मान दिया फिर ऐसे क्रांतिकारी को क्यों नहीं? श्री एम. डी. किरार जी ने बताया है कि, शहीद के मामले पर अतिशीघ्र सरकार द्वारा सम्मान दिया जाये।