धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व की है एकादशी: सत्संग समारोह में मुरलीमनोहर व्यास का मंतव्य

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चंद्रपूर -भारतीय संस्कृति में एकादशी का व्रत उपवास रखने का धार्मिक आध्यात्मिक तथा वैज्ञानिक महत्व है । एकादशी तिथि भारतीय पंचांग के अर्थात कैलेंडर के हिसाब से ग्यारहवां दिन होता है । सूर्य , चंद्र और पृथ्वी के परिक्रमा पथों और विशेष अंतरालों से यानी पृथ्वी के एक पूर्ण चक्र के लिए लगने वाले 24 घंटे में इन तीनों ग्रहों की बदलती दूरियों के कारण वायुमंडल में तेजी से परिवर्तन होता है । अमावस्या के दिन और पूर्णिमा के दिन समुद्र में ज्वार भाटा आता है । वह समुद्र में वायुमंडलीय दबाव के बढ़ने के कारण होता है । लहरें उग्र रूप धारण कर ऊंची – ऊंची उठती है। दूसरे दिन से लहरें शांत होने लगती है यह इस बात का संकेत है की समुद्र में वायुमंडलीय दबाव काम हो गया है। ग्यारहवें दिन तक अर्थात एकादशी के दिन तक यह दबाव पूर्णतः शांत हो जाता है । यही स्थिति हमारे शरीर पर भी लागू होती है।चंद्रमा मन और जल का देवता है ।समुद्र में ज्वार भाटा चंद्रमा के कारण आता है । इसी प्रकार हमारे शरीर पर और मन पर चंद्रमा का प्रभाव पड़ता है। कारण हमारे शरिर में सत्तर प्रतिशत जल है। एकादशी के दिन भोजन नहीं करने से शरीर के पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है मन शांत होता है इस दिन शांत चित्त से भगवान के पास बैठकर भगवद्कथा , भगवद् नामस्मरण , भजन- पूजन आदि करने से शरीर को पूर्ण विश्राम मिलता है और आध्यात्मिक दृष्टि से पुण्य का लाभ मिलता है। ऐसे विचार चंद्रपुर के आध्यात्मिक चिंतक तथा साहित्यकार मुरली मनोहर व्यास ने व्यक्त किये।
श्री गोवर्धन नाथ हवेली में आयोजित एकादशी सत्संग समारोह में आप बोल रहे थे। प्रारंभ में वैष्णव महिला मंडल ने श्री यमुनाष्टक के पाठ किये।
व्यासजी ने कहा हमारे अध्यात्म में खगोल, भूगोल , आयुर्वेद आदि सभी शास्त्रों का समावेश किया गया है। केवल धर्म ही नहीं मानवी जीवन में उपयुक्त सभी शास्त्रों का अभ्यास किया जाता है।
एकादशी के दिन सुबह उठकर व्रत करने का संकल्प लेकर मनको तैयार किया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की प्रसन्नता के लिए किया जाता है । इस से आत्मशक्ति बढ कर आत्मशांति होती है और मोक्ष प्राप्त होता है। अनेक पापों का प्रायश्चित होता है पुण्य प्राप्त होता है । शारीरिक , मानसिक तथा भावनात्मक आदि हर दृष्टि से स्वास्थ्य अच्छा होता है । व्रत के करने से शरीर की कोशिकाएं और डी एन ए पर सकारात्मक प्रभाव पड़ कर अनेक बीमारियों से बचाव होता है। इस व्रत के करने से पितरों का कल्याण होता है और उन्हें स्वर्ग प्राप्त होता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन किसी की मृत्यु होने पर भाग्यशाली होना माना गया है। उस व्यक्ति की आत्मा भगवान तक पहुंच जाती है ऐसी मान्यता है ।
इस व्रत का उद्देश्य है अपने मन और अपनी शारीरिक इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करके अपने आप को आध्यात्मिक प्रगति की ओर ले जाना ।
स्कंद पुराण में वर्णन आता है भगवान विष्णु के हृदय से कन्या प्रकट हुई, जिसका नाम एका रखा गया । वह दस शुभ लक्षणों से युक्त थी । वह जिसे निहारती उसे पुण्य प्रदान कर देती , संपदावान बना देती, भक्तिवान बना देती , वह जिस मार्ग से जाती उस मार्ग के द्वार खोल देती थी । एका दस लक्षणों से युक्त थी इसलिए उसे एकादशी कहा गया।
लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से कहा कन्या का कन्यादान किसे करोगे ? तब भगवान विष्णु ने कहा यह बात स्वयं एका से पूछो वह जिससे कहेंगी उसे हम कन्यादान कर देंगे । तब एकाने कहा अगर आप मुझे किसी को देना चाहते हो तो एक कृपा करो , मुझे पृथ्वी के उन मनुष्यों को प्रदान करो जो मृत्यु लोक में जन्म लेकर आपका भजन पूजन करेंगे । कम से कम दो एकादशी व्रत करें ऐसे पुण्यशाली मनुष्यों को मुझे प्रदान करें । यह एका उसे पुण्य प्रदान करेंगी और उस व्यक्ति के स्वर्ग में जाने के पहले मैं उसके आगे आगे चलती हुई मार्ग सुलभ करूंगी।
व्यासजी ने कहा एकादशी व्रत करना हर दृष्टी से लाभप्रद ही है। पुण्य भी मिलेंगा और अच्छा स्वास्थ्यभी प्राप्त होंगा। और कोई व्रत करो अथवा न करो लेकिन एकादशी व्रत प्रयत्नपूर्वक करना ही चाहिए। ऐसा हमारे शास्त्रों में कहा है।