श्रीमद् वल्लभाचार्यजी के वंशज आज भी श्रीकृष्ण भक्ति प्रदान कर रहे हैं।-मुरलीमनोहर व्यास का प्रतिपादन।

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चंद्रपूर – भगवान श्रीकृष्ण श्रीगोवर्धननाथ प्रभु ने श्रावण शुक्ल एकादशी की मध्यरात्री में प्रगट होकर जगद्गुरु श्रीमद् वल्लभाचार्यजी को आज्ञा प्रदान की जो जीव अनेकों वर्षों से मुझसे अलग हो गये है उन जीवों को मेरी शरण में लाओ। उनका ब्रह्मसंबंध करा कर उन्हें अपना बनालूंगा। इस लिए श्रावण शुक्ल एकादशी को पुष्टिमार्ग का स्थापना दिवस कहते हैं। तब से लेकर आज तक श्री वल्लभाचार्यजी के वंशजों ने करोडों लोगों को ब्रह्मसंबंध करा कर श्रीकृष्ण भक्ति प्रदान कर उनका उद्धार किया है, और आज भी करा रहे है । ऐसे विचार चंद्रपुर के आध्यात्मिक चिंतक तथा साहित्यकार मुरलीमनोहर व्यास ने प्रतिपादित किये।
श्री गोवर्धननाथ हवेली चंद्रपुर में मंगलवार 5 अगस्त श्रावण शुक्ल एकादशी के दिन पुष्टिमार्ग का स्थापना दिवस धुमधाम से मनाया। सुखा मेवा और पवित्रा के झुले में बालकृष्ण प्रभु को झुलाया गया। संध्या समय श्री गोवर्धननाथ प्रभु को पवित्रा पहनाई गयी। पवित्रा के पदों का गायन किया गया। मुखियाजी श्री नरेश पुरोहित ने आरती उतारी। दुसरे दिन बारस को जगद्गुरु श्रीमद् वल्लभाचार्यजी को पवित्रा पहनाई गयी।
व्यासजी ने कहा श्रावण शुक्ल एकादशी पुत्रदा एकादशी कहलाती है। लेकिन पुष्टिमार्ग में इसे पवित्रा एकादशी कहते है। कारण इसी एकादशी की मध्यरात्री में भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धननाथ स्वरुप में प्रगट होकर जगद्गुरु श्रीमद् वल्लभाचार्यजी को दर्शन दिये उस वक़्त मध्यरात्री के वक़्त भगवान का स्वागत करने के लिए फुलमाला नही थी। तब महाप्रभुजी ने सुत का हार बनाकर उसे केसर, चंदन तथा कुमकूम से रंगकर पवित्रा तैयार करके प्रभु का स्वागत किया। उस घटना की स्मृति में इस एकादशी को सभी वैष्णव अपने सेव्य बालकृष्ण प्रभु को पवित्रा पहनाते है। दुसरे दिन महाप्रभुजी और अपने अपने गुरुदेव को पवित्रा पहनाकर गुरुपूजन करते है। कारण श्रावण शुक्ल बारस के दिन सुबह महाप्रभुजी ने दामोदरदासजी हरसाणी को ब्रह्मसंबंध देकर विधिवत पुष्टिसंप्रदाय की स्थापना की।यह दिन पुष्टिसंप्रदाय की गुरु पुर्णिमा का दिन होता है।
वैष्णव महिला मंडल की सदस्याओंने सुखा मेवा का कलात्मक झुला तैयार किया। आकर्षक सजावट की।