“आचार्य दीपक के समान होते हैं, उनकी छत्रछाया अनमोल होती है।”

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जलगाव- जीवन में आचार्य का मार्गदर्शन ऐसा होता है जैसे सिर पर मजबूत छत, जो सूर्य, हवा और वर्षा से रक्षा करता है। साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका ये चार दीवारें हैं, और आचार्य उस छत के समान हैं जो जिनशासन की व्यवस्था को पूर्णता प्रदान करता है। श्रमण संघ के चौथे पट्टधर आचार्य पूज्य डॉ. शिवमुनी जी की 84वीं जन्म जयंती के अवसर पर राजस्थान प्रवर्तिनी, श्रमणीसूर्या पूज्य डॉ. सुप्रभाजी म.सा. ने विशेष प्रवचन में जैन आगम में वर्णित आचार्य की महिमा को उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं के समक्ष प्रस्तुत किया।
उन्होंने बताया कि नाम आचार्य, स्थापना आचार्य, द्रव्य आचार्य और भाव आचार्य ये चार प्रकार के आचार्य होते हैं। जब कहा गया कि “आचार्य दीपक के समान होते हैं, महान होते हैं”, तो एक शिष्य ने अपने गुरु से प्रश्न किया: “आचार्य का कार्य महान है, तो उन्हें सूर्य, चंद्र या समुद्र की उपमा क्यों नहीं दी गई? दीपक की ही उपमा क्यों?” गुरु ने उत्तर दिया: “सूर्य गर्म और तीव्र होता है, चंद्र अमावस्या को दिखाई नहीं देता, और समुद्र पूरा खारा होता है। लेकिन अंधकार को एक छोटा दीपक भी दूर कर सकता है। गुरु या आचार्य रूपी दीपक ज्ञान का प्रकाश देते हैं और दूसरों का जीवन उज्ज्वल करते हैं। इसलिए दीपक की उपमा सबसे उपयुक्त है।”
आचार्य डॉ. शिवमुनी जी का जन्म पंजाब में हुआ। वे उच्च शिक्षित हैं और दीक्षा लेने से पहले उन्होंने ज्ञान प्राप्ति हेतु विदेश यात्रा भी की। उनका कार्य अद्भुत है, उन्होंने हजारों साधु-साध्वियों और लाखों श्रावक-श्राविकाओं का मार्गदर्शन किया। उनके नेतृत्व में चतुर्विध संघ ने संयम, साधना और सेवा का आदर्श स्थापित किया। वे ध्यान और आत्मकल्याण पर विशेष बल देने वाले संत हैं। उन्होंने ध्यान के माध्यम से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का संदेश दिया। उन्होंने भारतीय धर्मों में मुक्ति की संकल्पना पर पीएच.डी. की है। उनका जीवन कठोर तपस्या, पैदल विहार और साधना से परिपूर्ण है। उनके सान्निध्य में अनेक लोगों ने शांति, संतुलन और सद्गुणों का अनुभव किया।
उनके जन्मदिन के अवसर पर योगसाधना के माध्यम से महाविदेह यात्रा का आयोजन हुआ। महाविदेह यात्रा आत्मोन्नति का मार्ग है, जिसमें भक्त अपने अंतःकरण से तीर्थंकर से जुड़ते हैं। यह यात्रा बाह्य नहीं, बल्कि अंतर्मन की रहस्यमयी और पवित्र यात्रा है, जिसे उपस्थित जनों ने अनुभव किया। इस अवसर पर संघपति सेवादास दलुभाऊ जैन और चातुर्मास समिति की अध्यक्षा ताराबाई डाकलिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए.